बेहतर होता कि किसी भी ग्राम सभा में अंत्योदय की सूची नहीं होती: पीयूष त्रिपाठी

   अन्तत्योदय अन्न योजना से आगे

सम्प्रति:
पीयूष त्रिपाठी,
सहायक प्रोफेसर राजनीति शास्त्र,
डी. एन. पी.जी.कॉलेज, बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश।
गांधीजी ने एक जंतर दिया है। इसके अनुसार किसी भी काम करने की कसौटी यह जांचने में है कि इससे समाज की कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को कितना फायदा मिलता है। इसी को राल्स ने कहा है कि किसी भी शृंखला की मजबूती उसकी सबसे कमजोर कड़ी से निर्धारित की जाती है। कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति के जीवन में प्रभावी हस्तक्षेप करके तथा सबसे कमजोर कड़ी को मजबूत करके ही समाज को बेहतर बनाया जा सकता है। अंत्योदय अन्न योजना की कल्पना एक ऐसे ही छोटे लेकिन प्रभावी हस्तक्षेप के रूप में की गयी थी। 

इस योजना की शुरुआत सन 25 दिसंबर 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के अवसर पर की गयी थी। यह शत-प्रतिशत केंद्र प्रायोजित योजना है जबकि इस कार्यक्रम के अंतर्गत लाभार्थियों की पहचान राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत लाभार्थी परिवार को 35 किलो खाद्यान्न दिया जाता है। गेहूं 2 रुपये प्रति किलो और चावल 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्रति महीने दिया जाता है। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को लागू करने में अग्रणी रहने वाले राज्य राजस्थान ने इस कार्यक्रम को सबसे पहले अपने यहां लागू किया।

अंत्योदय का चुनाव करने का जो फार्मूला निर्धारित किया गया उसके अंतर्गत गरीबों में भी अति गरीब परिवारों का चयन किया जाना था। सैद्धान्तिक रूप से इसके लाभार्थियों में लंबे समय से गंभीर बीमारी से ग्रस्त परिवार, विधवा मुखिया वाला परिवार,निःशक्तजन परिवार, एकल महिला या पुरुष वाला असहाय परिवार हो सकता है। राज्य सरकारों द्वारा पहले से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले एक करोड़ परिवारों को इसके अंतर्गत शामिल किया गया। 2003 और 2004 में अंत्योदय परिवारों की संख्या को 50-50 लाख बढ़ाया गया। वर्तमान में दो करोड़ अंत्योदय परिवार हैं। 

योजना का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमे 35 किलो खाद्यान्न एकल सदस्य वाले परिवार को भी मिल सकता है; जबकि,खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 35 किलो के अनाज पाने के लिए घर मे 7 सदस्य होने चाहिए। अंत्योदय कार्ड पाने के पीछे का सबसे बड़ा आकर्षण शायद यही था। 

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया। इसके अंतर्गत भारत की तीन चौथाई आबादी को खाद्य सुरक्षा के दायरे में लाया जाना था।  खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लागू होने के साथ अंत्योदय लाभार्थियों की संख्या निश्चित कर दी गयी तथा इन्हें खाद्य सुरक्षा के दायरे में स्वतः सम्मिलित मान लिया गया। इसका मतलब यह है कि पूरे भारत में अंत्योदय परिवारों की संख्या दो करोड़ से अधिक नहीं हो सकेगी। अब किसी नए परिवार को अंत्योदय में सम्मिलित करना कठिन बना दिया गया। किसी नए परिवार को अंत्योदय में जोड़ने के लिए सबसे पहले ग्राम सभा की खुली बैठक आयोजित करना होगा, सूची में सम्मिलित किसी परिवार के नाम को काटने का प्रस्ताव लाना होगा और फिर बहुमत से नए परिवार को सम्मिलित करना होगा। 

लाभार्थियों के चयन में ग्राम पंचायत (इसे ग्राम प्रधान तथा पंचायत सचिव पढ़ा जाए) ने अंत्योदय की मूल भावना को ठेस पहुंचाई। लाभार्थियों का चयन राजनीति तथा वोट बैंक का साधन बन गई। इसके साथ ही खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने और मनरेगा जैसा कार्यक्रम आ जाने से इस कार्यक्रम की लोकप्रियता में कमी हुई है परंतु पंचायत चुनाव की दृष्टि से इसका महत्व अभी भी बना हुआ है।

अंत्योदय जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज के गरीबों में से भी अति गरीब का चयन करके उसे न्यूनतम खाद्य सुरक्षा प्रदान करना था। एक वर्ष तक आपूर्ति निरीक्षक के रूप में काम करने पर इसके बारे में कुछ और भी जानने समझने का मौका मिला। कुछ परिवार ऐसे थे जिनके सदस्यों की संख्या सात से अधिक थी, परंतु वे अंत्योदय राशन कार्ड के चलते केवल 35 किलो खाद्यान्न ही ले पाते थे। खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू होने के बाद विभेदीकृत दरें समाप्त हो चुकी हैं तथा गरीबी रेखा से ऊपर अर्थात एपीएल तथा गरीबी रेखा से नीचे अर्थात बीपीएल के मध्य अंतर समाप्त हो चुका है, अतः सात सदस्यों से अधिक के परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा का राशन कार्ड ही उचित है। कई मामलों में जांच के दौरान यह पाया गया कि प्रधान अथवा उचित दर विक्रेता अथवा किसी प्रभावशाली व्यक्ति की मां के नाम पर अंत्योदय राशन कार्ड बना हुआ है। कारण पूछने पर बताया गया कि मां अलग रहती है। यह प्रधान तथा पंचायत सचिव की मिलीभगत से की गई बेईमानी थी। ग्राम सभा को अंत्योदय की पहचान का जिम्मा देना सैद्धान्तिक रूप से अच्छा है परंतु ग्राम सभाएं अपने संवैधानिक दायित्वों के प्रति कितना सजग है, यह जानने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है।

अंत्योदय राशन कार्ड बनाए रखने का उद्देश्य इस वर्ग का जीवन स्तर ऊपर उठाकर खाद्य सुरक्षा की दायरे में लाना था परंतु वोट की राजनीति, स्थानीय समीकरण तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव ने इनकी संख्या को यथावत बनाए रखना है। बेहतर होता कि समय के साथ सभी अंत्योदय खाद्य सुरक्षा के दायरे में आ जाते और किसी भी ग्राम सभा में अंत्योदय सूची नहीं होती।

टिप्पणियाँ

  1. आप की बातों से पुर्ण रूप से सहमत, ऐसा हर गांव मे देखने को मिलता है साथ ही साथ ऐसा भी देखने को मिलता है की जो परिवार सच मे अंत्योदेय की श्रेणि मे आता है उसका नाम उस सूची मे नहीं है...

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  2. अंत्योदय कार्ड को केवल 35 किलोग्राम खाद्यान्न से जोड़कर देखना एकपक्षीय होगा।अन्योदय लाभार्थियों को मिलने वाली निःशुल्क चिकित्सा सुविधाओं, उज्ज्वला योजना के लाभ,आवास योजना में लाभ,निःशुल्क विजली कनेक्शन आदि सरकारी योजनाओं के दृष्टिगत भी देखा जाना चाहिए।मेरे विचार से समाज के सबसे वंचित परिवार के चिन्हीकरण और उनके उत्थान के लिए योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु अंत्योदय योजना महत्वपूर्ण है।हां मैं आप लोगों के इस विचार से सहमत हूँ कि अन्त्योदय योजना के लाभार्थियों के चिन्हीकरण में पारदर्शिता बरती जाए।इसके लिये समाज को संवेदनशील होना होगा और जो परिवार इस श्रेणी में नहीं आते उन्हें स्वयं इस योजना को छोड़ना होगा तथा उन वंचित परिवारों के लिए दिल बड़ा करना होगा।इसमें सुधार हेतु ईगो डिफेंस सिस्टम भी एक बेहतर रणनीति हो सकती है।हमें एक बात और समझना होगा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून तथा इसके तहत संचालित अंत्योदय अन्न योजना लाभार्थियों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में अभी प्रथम पायदान पर ही है।अभी हमें लाभार्थियों की थाली में रोटी और चावल के साथ दालें और सब्जियों की भी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी अर्थात हमें पौष्टिक भोजन से पेट भरने की दिशा में प्रभावी पहल करनी होगी।

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  3. वंचित वर्ग के पहचान के लिए हमारे पास SECC आंकड़ा है जो निश्चित ही अत्योदय से बढ़िया है। SECC के आधार पर ही आयुष्मान लाभार्थी का चयन किया गया है। इस बारे में भी सोचने की जरूरत है। अत्योदय सूची में कुपात्रों को शामिल किया गया है जबकि सुपात्र बाहर है ।

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    1. SECC सूची हो,आयुष्मान लाभार्थियों की सूची हो या अन्त्योदय लाभार्थियों की सूची हो कुपात्र तो सभी मे शामिल हैं।हमें तो समाधान ढूढना है कि इनसे कैसे अपात्रों को बाहर किया जाये और छूटे हुए पात्रों को अंदर किया जाये।मेरा तो यह कहना था कि अन्त्योदय सूची को समाप्त करना 2 करोड़ परिवारों के लिए हितकर होगा या उक्त सूची में व्याप्त खामियों को दूर करना।

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  4. मेरे समझ से अत्योदय को आरम्भ अन्य कार्यक्रमो के लाभर्थियों की पहचान हेतु नहीं किया गया था। उसका उद्देश्य समाज के 2 करोड़ सबसे वंचित परिवारों के लिए अत्यंत कम शुल्क पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए हुआ था। लगभग वही सभी बिशेषता खाद्य सुरक्षा कानून के माध्यम से देश के लगभग 70 प्रतिशत या दो-तिहाई जनता या परिवारों को उपलब्ध है। इसके विपरीत आरम्भ से ही SECC आँकड़ो का शुरुआत सरकारी लोककल्याणकारी कार्यक्रमो में लाभर्थियों के चयन के लिए हुआ था। एक चीज यह भी नोट करने लायक है कि अत्योदय सूची एकप्रकार से प्रधान और ग्राम सचिव के हाथ मे है जबकि SECC सर्वे जनगणना के समतुल्य है, मतलब SECC में त्रुटि हर हाल में अत्योदय से कम होगा क्योकि SECC यूनिवर्सल सैंपल है। अतः जिस कार्य के लिए जो शुरू किया गया है उसे किया जाना चाहिए... खाद्य सुरक्षा पर पिछले 10 सालों के अनुभव के आधार पर मेरा निजी मत है कि...बेहतर होता कि किसी भी ग्राम सभा मे अत्योदय की सूची न होती।

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