गणति सभ्यता का निर्माण करता है: अमित भूषण

गणित एवम सभ्यता का विकास साथ-साथ हुआ। गणति(अंकगणित), जो कि अंको एवम संख्याओं का अध्ययन करता है तथा जिनपर समस्त सभ्यता टिकी हुई है, के बारे में अनुमान/संभावना करना बेहद आसान है। कैसे? एक के बाद दो, दो के बाद तीन, तीन के बाद चार आता है...और ऐसे ही आगे फैला तो अनंत सिकुड़ा तो अनंत और हर दो के बीच अनंत तथा कुछ नही है तो शून्य। सदा ऐसे ही होता है। इसमे से यदि किसी  एक का भी क्रम भंग होगा तो समस्त सभ्यता समाप्त। कैसे? उदाहरण के लिए अकेले  पैथगोरस प्रमेय के भंग होने से समस्त पिरामिड संरचना और हमारे घर-बार सब समाप्त। इसीलिए कहा कि गणति सभ्यता का निर्माण करता है और यह मनुष्य के साथ ही विकसित हुआ।

अंकगणित में अनुमान करना आसान है। लेकिन समाज इतना आसान नहीं होता है। समाजिक सम्बंध इस तरह से क्रमबद्ध नहीं होते है। समाज मे कोई अंकगणितीय क्रम नहीं पाया जाता है। अतः समाजिक संबंधों के बारे में अनुमान लगाना अत्यंत कठिन और उतना ही जटिल है।

 तो क्या गणित अधूरा है? यह केवल सभ्यता के विकास में ही हमारा मदद करता है। या केवल सरल अनुमान ही व्यक्त करता है। नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। गणति का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग बीजगणित हमे सामाजिक संबंधों के बारे में अनुमान लगा सकने की शक्ति देता है। इसे हम समीकरण कहते हैं। अनेक चर और इन अनेक चरों से बने अनेक सम्बंध। चर(मनुष्य या समाज) दो तरह से बढ़ते है अथवा घटते है। सरल क्रम में बढ़ेंगे तो योग और गुणित क्रम में बढ़ेंगे तो गुणा इसीप्रकार सम्बंध दो तरह से घटेंगे सरल क्रम में ऋण और विभक्त क्रम में भाग। तो चरों के इस प्रकार से बढ़ने और घटने के आधार पर हम उनके बीच के फलनात्मक संबंध  को लिख लेते है और जब हम ऐसा कर लेते है तो उसे समीकरण कहते है।
समीकरण एक चर, दो चर, बहु चर या घातांकीय हो सकते है। जब हम यह कहते  है कि फ़ला व्यक्ति दर हरामी है तो ऐसा हम घातांकीय रूप से हम कह रहे होते है(so sorry). 

संबंधों को हम हल भी कर सकते है और चर राशि का बिल्कुल सटीक अनुमान लगा सकते है। एक या दो या तीन चर राशियों को तो साधारण विद्यार्थी भी थोड़े परिश्रम से विलोपन विधि से हल कर सकता है। उदहारण- दरवाजा बंद था,घर मे बाहर से कोई आया नहीं और घर मे हम ही दो थे तो चोर कौन है, जाहिर सी  बात है दूसरा व्यक्ति । घातांकीय संबंधों को आप श्रीधर जी महाराज विधि से हल कर सकते है। लेकिन जैसे-जैसे सम्बंध जटिल होते जाएंगे तीन या चार या उससे भी अधिक हमारे विलुप्त करने की शक्ति क्षीण हो जाएगी। दरवाजा भी खुला था, cc tv से दिख रहा कि बाहर से  कोई अंदर आया, घर मे भी बहुत लोग थे, और सब के सब शपथ खा रहे कि चोरी मैंने नहीं कि।

ऐसे जटिल सम्बंध विलोपन से हल नहीं होगा। इसको हल करने के लिए अनुभव और, और अधिक पढ़ाई की जरूरत होगी। ऐसे जटिल सम्बंध का हल समाज मे प्रत्येक व्यक्ति के लिए निर्धारित निश्चित स्थान के आधार पर ही सम्भव है। जैसे अमित चोर नहीं है। ऐसा बाबा कह रहे है। लंबे समय से वे समाज मे मेरे स्थान को देख रहे है। स्थान के आधार पर जब हम समीकरण या सम्बंध हल करेंगे तो उसे हम आव्यूह या सरणीक(क्रेमर) विधि कहते है। इससे हम चार चरों तक के सम्बंध को आसानी से हल कर लेते है। कंप्यूटर ने इसके बाद के भी जटिल हल को निकालना आसान बना दिया है। इसके लिए M.Sc. नही समझ की जरूरत होगी। और सॉफ्टवेयर के ज्ञान की जरूरत होगी।

पर प्रश्न तो अब भी है। समीकरण वास्तव में जटिल या घातीय संबंधों को हल तो कर सकते है लेकिन समीकरण के साथ जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है कि यह केवल बराबर के संबंधों का ही हल करता है(समीकरण के लिए जरूरी है LHS=RHS). संबंध भले जटिल हो लेकिन जब दो बराबर पक्ष होंगे तभी गणति जटिल सम्बंध या सामाजिक संबंधों संबंधी अनुमान दे पाएगा। जबकि हम जानते है समाज के सम्बंध बराबर नहीं उच्च-नीच के होते है। तो फिर आरम्भ के प्रश्न पर वापिस आते है। क्या गणित अधूरा है?क्या  यह सरल अथवा जटिल अनुमान केवल बराबरी के स्थिति में ही लगाता है? क्या यह केवल सभ्यता का ही निर्माण करता है? क्या यह सामाजिक सम्बन्धो को नहीं व्यक्त करता है?

फिर से मैं कहूंगा कि बिल्कुल ऐसा नहीं है। गणित तब भी अनुमान लगाता है जब सम्बंध बराबर के न होकर कम या अधिक के हो। इसे हम असमिका कहते है। समाज में  प्रत्येक व्यक्ति का स्थान या तो बराबर की है(समीकरण) या उससे ऊपर हैसियत की है(Greater than) या उससे नीचे(Less than) की है। जब चरों के आपसी संबंध को हम greater than या less than में लिखते है तो ऐसे सम्बन्धो को जटिल सम्बंध या मैं इसे वास्तविक सामाजिक संबंध कहता हूं। इसका हल हम slack variavble  के आधार पर करते है। मतलब चरो में या तो कुछ जोड़ कर या घटाकर पहले समीकरण बना लेते है फिर समिका सम्बनध के आधार पर चरो के मान को निकाल लेते है। ऐसे अनुमान बेहद उपयोगी साबित होते है। रैखिक प्रयोजन के बारे में हम जानते है। वे असमिका सम्बंध आधारित होते है। इनके अनुमान बहुत उपयोगी होते है। 

अतः स्पष्ट है गणित अधूरा नहीं एक पूर्ण विषय है। इसने केवल सभ्यता का ही विकास नहीं बल्कि आगे चलकर जटिल सामाजिक संबंधों के बारे में भी अनुमान दिया है। कंप्यूटर के विकास ने अनुमान को और आसान कर दिया है, किन्तु आज भी बहस का विषय है कि गणित कला है या विज्ञान।

डॉ. अमित भूषण द्विवेदी
सहायक प्रोफेसर अर्थशास्त्र
शासकीय तुसली महावि, अनूपपुर
मप्र.

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