महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक हैं-राहुल त्रिपाठी

समकालीन मानव सभ्यता में  मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें हम सम्मान से महात्मा गांधी कहते हैं, से अधिक चर्चित व्यक्ति शायद ही कोई हो। 20 वीं शताब्दी में, जब दुनिया पूंजीवाद, मार्क्सवाद, फासीवाद, अतिराष्ट्रवाद जैसे चरम राजनीतिक मान्यताओं के भंवर में फंसी हुई थी, तभी इस विलक्षण संत  ने अपने जीवन जीने के तरीके तथा आचरण से मानव सभ्यता को एक वैकल्पिक सादगीपूर्ण, परंतु संपोषणीय रास्ता दिखाया। उनका मार्ग इस अर्थ में वैकल्पिक परंतु क्रांतिकारी था कि वह प्रकृति के अंधाधुंध दोहन पर आधारित न होकर भारतीय आदर्शों से अनुप्राणित तथा मानव प्रकृति सहकार पर टिका था। यही कारण है कि अपने आदर्शों और विलक्षण व्यक्तित्व के कारण महात्मा गांधी उन व्यक्तियों में से रहे हैं जिन्हें एक साथ निंदा तथा स्तुति  प्राप्त हुई है।

कोई व्यक्ति प्रासंगिक है या नहीं यह दो बातों पर निर्भर करता है। प्रथम- उसने क्या कहा अर्थात उसके विचार क्या थे और द्वितीय- उसने क्या किया अर्थात उसका आचरण कैसा था। विचार तथा आचरण में तारतम्यता संत के चरित्र की विशेषता होती है। इस अर्थ में भी गांधी दूसरे चिंतकों से अलग थे कि उनकी कथनी तथा करनी के बीच न्यूनतम अंतर था। 

महात्मा गांधी के विचारों का फलक अत्यंत विस्तृत था। समय के साथ उन्होंने अपने विचारों में संशोधन भी किया।  उन्होंने सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक, पर्यावरण, अंतरराष्ट्रीय संबंध, साध्य -साधन की पवित्रता, मानव चरित्र, औद्योगीकरण आदि विविध संदर्भों में अपने विचार दिए हैं जिसका एक एक करके विवेचन करना अपेक्षित होगा।

सामाजिक रूप से गांधी जी ने प्रत्येक व्यक्ति को समान महत्व देने का समर्थन किया है। यह उनके आध्यात्मिक चिंतन के अनुरूप था। वे मानवमात्र तथा प्राणिमात्र में एक ही आध्यात्मिक सत्ता का प्रतिबिंब देखते थे। एक ही सत्ता की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ होने के कारण सभी मनुष्य एक समान गरिमा के अधिकारी हैं। इसीलिए उनके अनुसार एक सफाईकर्मी तथा एक वकील या एक चिकित्सक का काम समान रूप से महत्वपूर्ण था। लोकतांत्रिक समाज, सैद्धान्तिक रूप में ही सही, मानव को समानता देने की मांग करता है। समानता के बारे में गांधीवादी समझ लोकतंत्र को समावेशी और टिकाऊ बनाती है।  

महात्मा गांधी वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे, परंतु वर्ण व्यवस्था के उनके  समर्थन का आधार कार्य विशेषीकरण और रोजगार था। वे इसे परंपरागत शिल्प को बनाए रखने तथा आध्यात्मिक उन्नति के साधन के रूप में देखते थे; परंतु, डॉ भीमराव आंबेडकर ने गांधी जी के वर्णव्यवस्था पर विचार की आलोचना की है। उनके अनुसार वर्णव्यवस्था सामाजिक गतिशीलता के लिए घातक है तथा यह चयन की स्वतन्त्रता बाधित करती है। आधुनिक समाज में वर्णव्यवस्था को सैद्धांतिक या व्यावहारिक रूप से स्वीकार करना प्रतिगामी कदम होगा।

गांधी जी की अंत्योदय(अंतिम व्यक्ति का उदय) हरिजन उत्थान जैसी अवधारणाएं वर्तमान सामाजिक न्याय आधारित नीतियों में स्पष्ट दिखती हैं। गांधी जी के अनुसार किसी काम को जाँचने की कसौटी यह है कि उस काम से समाज की कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को कितना लाभ मिल रहा है। सामाजिक न्याय तथा समावेशन का विस्तार देने के लिए चाहे जो भी कानून या नियम बनाए जाएं, कतार में अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखे बिना कोई कार्यक्रम न तो प्रभावी हो सकता और न ही सफल हो सकता है।  

आर्थिक रूप से गांधी जी न्यासिता एवं सर्वोदय का सिद्धांत देते हैं। न्यासिता की अवधारणा के अंतर्गत पूंजीपति पूंजी का स्वामी नहीं, बल्कि समाज द्वारा नियुक्त न्यासी होता है जो उद्योग का संचालन समाज हित में करता है। सर्वोदय का अर्थ है- सभी का उदय तथा सब प्रकार से उदय। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व जिसे सीएसआर कहा जाता है, का विधिक प्रावधान करती है जो गांधी के न्यासिता सिद्धांत की व्यवहारिक अभिव्यक्ति है। मार्क्सवाद, पूंजीवाद तथा  उपयोगितावाद आदि तमाम विचारधाराएं अपने आर्थिक विकास के ढांचे में सबको शामिल नहीं करतीं जबकि महात्मा गांधी का सर्वोदय सभी को अपने दायरे में समेटता है। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्वीकृत सतत विकास लक्ष्य 2030, महात्मा गांधी के सर्वोदय सिद्धांत से ही प्रेरित है। 1980 के दशक में प्रकाशित ब्रंटलैंड कमीशन की रिपोर्ट जिस संधारणीय विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की बात करती है वह बात गांधी की पचास साल पहले कह चुके थे।

गांधी की सामाजिक आर्थिक भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विकास की बात करते थे। भारत जैसे जनाधिक्य और पिछड़ी आधारभूत संरचना वाले देश में कुटीर उद्योग बेहतर विकल्प है। सरकार की मुद्रा योजना, सूक्ष्म लघु मध्यम उद्यम मंत्रालय की स्थापना, स्वरोजगार के कार्यक्रम, स्वयं सहायता समूह, आदिवासी कल्याण आदि अन्यान्य योजनाएं महात्मा गांधी के विचारों की व्यवहारिक अभिव्यक्ति है। गांधी की कुटीर उद्योग की अवधारणा और अतिशय औद्योगीकरण के विरोध को प्रायः वर्तमान समय में अप्रासंगिक मान लिया जाता है। ऐसे लोगों को रामधारी सिंह दिनकर फटकार लगाते हुए कहते हैं- 

"कौन कहता है कि बापू शत्रु थे विज्ञान के,

वे मनुज से मात्र इतनी बात कहते थे।

रेल मोटर या की पुष्पक यान चाहे जो रचो पर, 

सोच लो आखिर तुम्हें जाना कहां है?"

गांधी जी का मशीनीकरण का विरोध का विचार तत्कालीन समय में किसी और कारण से प्रासंगिक था, वर्तमान समय में यह दूसरे संदर्भ में प्रासंगिक हो गया है। मशीनों पर अति निर्भरता ने मनुष्य को मोटापे और शुगर जैसी बीमारियों से ग्रसित कर दिया है। मशीनों पर निर्भरता कम करके हम अपने स्वास्थ्य की पुनर्बहाली कर सकते हैं। 

राजनैतिक रूप से गांधी जी ने विक्रेंदीकरण तथा ग्राम स्वराज की अवधारणा दी थी। 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्त्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 40 में निहित गांधीवादी ग्रामीण स्वराज और विकेंद्रीकरण की संकल्पना को व्यवहारिक बना दिया है।

गांधी जी की धर्म आधारित राजनीति की संकल्पना को सच्चाई से लागू करने पर संप्रदायवाद की समस्या का समाधान संभव है। गांधी जी के अनुसार सच्चा धार्मिक व्यक्ति कभी भी सांप्रदायिक नहीं हो सकता। गांधी जी ने सभी धर्मों में सत्य का अंश बताया तथा ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग के रूप में देखा। इसीलिए गांधी ने सर्वधर्मसमभाव को धार्मिक सहिष्णुता से बेहतर माना। 

साध्य - साधन की पवित्रता संबंधी विचार तो सर्वकालिक रूप से प्रासंगिक है। कहा भी गया है कि"बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय? साध्य साधन की पवित्रता की उपेक्षा करने पर कोरोना संकट,गृहयुद्ध,आतंकवाद, नक्सलवाद,पर्यावरण संकट जैसी समस्याएं मानव सभ्यता के समक्ष सबसे बड़ा खतरा बन चुकी हैं। उदाहरण के लिए पर्यावरण संकट को ही लें। पर्यावरणीय संकट प्रकृति के अंधाधुंध दोहन के कारण पैदा हुआ है। जल, जंगल, जमीन, प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन किया जा रहा है। यह एक दिन मानव सभ्यता के महाविनाश का कारण बनेगा। वर्तमान पर्यावरणीय संकट का समाधान गांधी जी की इस सूक्ति में निहित है कि - "पृथ्वी मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति में सक्षम है, लालच पूर्ति में नहीं।" यदि हम समय रहते नहीं चेते और गांधी की सूक्ति पर नहीं  चले तो मानवजाति का विनाश के मुहाने पर पहुंचना निश्चित है।

 गांधी जी के सत्य अहिंसा और सत्याग्रह संबंधी विचारों को मार्टिन लूथर किंग,नेल्सन मंडेला आदि ने अपने अपने देश में लागू किया। नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से गांधीवादी विचारों के सहारे लड़े जबकि मार्टिन लूथर किंग अमेरिका में नस्लवाद से। आन सान सू की ने म्यांमार में सैन्य शासन के विरुद्ध गांधीवादी तरीकों से संघर्ष किया। 

आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गांधीवादी शांति अहिंसा को विभिन्न समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान माना जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने तो गांधी जयंती 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। 

गांधीजी के अनुसार मानव स्वभावतः मूलतः अच्छा है। परंतु मानव स्वभाव के संदर्भ में गांधीजी के विचार आंशिक रूप से ही लागू होते हैं।कोरोना काल में कुछ लोगों द्वारा आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी,निजी अस्पतालों द्वारा की जा रही खुली लूट, गांधी नहीं, बल्कि हॉब्स तथा मैकियावेली आदि द्वारा चित्रित मानव स्वभाव (मानव स्वभावतः दुष्ट व लालची होता है) की पुष्टि करते हैं। परंतु कोरोना काल में डा. के के अग्रवाल जैसे लोग भी हैं, जो कोरोना संक्रमित होने पर भी अंतिम समय तक लोगों का इलाज करते रहे। डा. के के अग्रवाल गांधीवादी मानव स्वभाव का जीवंत उदाहरण है।

विचारों के साथ-साथ व्यवहार के स्तर पर भी गांधीजी खरे उतरते हैं। उन्होंने ने जीवन भर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। हिंसक हो जाने के कारण उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया; जबकि, उनके सबसे करीबी सहयोगी आंदोलन वापसी के पक्ष में नहीं थे।  इसलिए कोई अपनी अपरिपक्व समझ के आधार पर यह उद्घोषणा करता है कि महात्मा गांधी के विचार आज लागू नहीं हो सकते हैं तो उसे स्वयं गांधीजी के जीवन को देखना चाहिए।

विकास तथा मानव कल्याण को लेकर अलग अलग विचारधाराएँ हैं। अगर इनके चश्मे से गांधी के विचारों का मूल्यांकन किया जाए, तो गांधी शायद पुरातनपंथी तथा प्रतिगामी लगें। परंतु यदि विकास को सतत तथा दीर्घकालिक  एवं मानव कल्याण को समावेशी बनाना है तो हमें गांधी से मार्गदर्शन ग्रहण करना होगा। गांधी के विचारों में वैकल्पिक दृष्टि है तो लोचशीलता भी है। महात्मा गांधी मानव सभ्यता के वो आधार स्तंभ हैं, जिस पर टिके रहने से ही यह सभ्यता पुष्पित एवं पल्लवित होगी। वे समय और परिस्थिति के अनुरूप अपने विचारों का परिष्कार करते हैं। इसीलिए महात्मा गांधी के बारे में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने तो यहां तक कह दिया कि "आने वाली पीढ़ियां बहुत मुश्किल से इस बात पर विश्वास करेंगी कि इस तरह के किसी हाड़मांस वाले व्यक्ति ने इस धरती पर चहलकदमी की होगी।"




टिप्पणियाँ

  1. आईएएस, पीसीएस और गांधी जी के बारें में सामान्य समझ की प्राप्ति रखने के इच्छुक छात्रों एवम पाठकगणों के लिए संक्षिप्त किन्तु, बेहतरीन लेख।

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  2. बढ़िया लेख सर, शायद इसे पढ़कर कुछ गांधी विरोधियों को भी समझ आए की गांधी जी की क्या प्रासंगिकता है।

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