मेरा प्रथम शोध यात्रा:अमित भूषण

अनेक लोगों से ठीक उलट मैं बचपन से ही रिसर्च स्कॉलर था / बचपन
से ही मेरे दिमाग में हमेशा  शरारतें उमड़ती-घुमड़ती रहती थी/ यह उन दिनों की बात है जब मेरे एक बडे भाई मेरा गुरु हुआ करते थे/ हुआ करते थे वो इसलिए क्योंकि अब उतना उनसे प्रेरित नहीं रहता जितना कि उस वक़्त हुआ करता था। तब मैं शायद कक्षा सातवीं या आठवीं में पढ़ रहा था/ निःसंदेह तब अपने गाँव पर ही रहकर पढ़ाई करता था/ खेती और पशुपालन दोनों होता था और छुटपन से ही इस कार्य मे लग चुके थे/

खरीफ के फसल में हमलोग मुख्य रूप से मक्का उगाते थे/  एक दिन जब घनघोर बारिश हुई थी और हमारे बड़े भाई जी उर्फ गुरुजी और मैं  सुबह के वक़्त अपने खेत पहुंचे तो यह पाया कि किसी ने खेत मे से कुल जमा मिलाकर 50-60 मक्के के भुट्टे को काट लिया था/ कटे हुए भुट्टे को देखकर मैं गुरुजी से कहा छोड़ो किसी ने काट लिया होगा/ उन दिनों हमलोग खूूूब  फ़िल्म देखा करते थे, सिनेमा हाल में नहीं शादियो में अक्सर चलने वाले वीडियो पर देखते थे/ फ़िल्म के डायलॉग का असर मेरे ऊपर गुरूजी के कृपा से ही पड़ता था/
गुरु ने कटे हुए भुट्टो को देखकर कहा  नही अमित खून का बदला खून से लिया जाएगा/ चूँकि मैं गुरु से प्रभावित था अतः चाहे-अनचाहे रूप से मैं सहमत नहीं भी होऊंगा तो भी विरोध तो बिल्कुल नहीं कर सका/ और इस खूबसूरत फ़िल्मी डायलॉग  के बाद से ही मेरे उस प्रथम किन्तु, सूक्ष्म रिसर्च प्रॉजेक्ट की शुरुआत हो सका था/ जो भी हो इस खोजी रिसर्च का उद्देश्य स्पष्ट रूप से निर्धारित हो चुका था/



गुरु ने कहा कि जिस किसी ने भुट्टे को अपने खेत से काटा है उसका बदला उसके खेत से  उतने ही भुट्टो को काटकर लिया जाएगा/ रिसर्च प्रॉब्लम यह था कि जिसने हमारे खेत को कटा था उसको हमलोग जानते नहीं थे/ अतः  उस अज्ञात व्यक्ति का कैसे पता लगाया जाय यहीं हमलोगों की मुख्य समस्या थी/ शोध के हिसाब से इसे हम शोध समस्या कहेंगे/

अक्सर आइडेंटिफिकेशन(पहचान) से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या उचित शोध विधि के चुनाव से संबंधित होता हैं / उचित शोध विधि का चुनाव कैसे किया जाय उसको अब जाकर मैं जान सका हूँ / लेकिन गुरु जी के लिए यह उस वक़्त भी बिल्कुल कठिन नहीं था/ उन्होंने रिव्यु  ऑफ लिटरेचर का खूबसूरत प्रयोग 'आइडेंटिफिकेशन' के लिए मजबूत शोध विधि के  रूप मे किया/ उन्होंने कहा कि इस इलाके में सिरोधर तिवारी के जानकारी के बिना हमारें क्या किसी के भी खेत में कोई चोरी नहीं  हो सकती हैं/  इस कांड को चोरी शब्द से संबोधित करने में मेरे रिसर्च वाले कई मित्रों को आपत्ति हो सकती है/ लेकिन गुरु जी के लिए यह विशुद्ध चोरी था/

 फिर से हम दोनों के समक्ष तब समस्या उठ खड़ी हुई जब मैंने गुरुजी से कहा कि यदि चोरी सिरोधन तिवारी के ज्ञान में हुई है तो भला वे हमें चोर का नाम क्यो बताएँगे/इस समस्या से निपटने के लिए हमें एक 'आल्टर्नेटिव हाइपोथिसिस' की ज़रूरत थी/  इस समस्या का भी समाधान करने में गुरुजी ने ज्यादा वक्त नहीं लिया/ उन्होंने प्रत्युत्तर में तपाक से कहा कि इतनी तेज बारिश में खेत मे पड़े पैरो के निशान अवश्य ही उस चोर के होंगे/ होंगे क्या उन्होंने फैसला सुना दिया खेत मे पड़े पदचिह्न उस चोर के है/ पदचिन्ह को बड़े ध्यान से गुरु जी ने देखा और गहराई से उसे अब्ज़र्व करने लगें/ फिर उस पदचिह्नों के लेंथ, डेप्थ और एक्सपैंशन इत्यादि का माप किसी खोजी जासूस की भांति करने लगें/ फिर क्या था उस माप को ऐसा कोई स्पेस चाहिए था जहां हम आँकड़े को लोकेट कर सकते थे और तुल्यता विधि का प्रयोग करके उस ब्यक्ति को पहचान सकते थे/ मतलब वह व्यक्ति चोर होगा जिसके पैरों की लंबाई हमलोगों के द्वारा खेत मे मापे गए पैरों की लंबाई के बराबर होता/ 'स्पेस' कोई प्राब्लम नहीं  है यदि हमरा रिव्यु और ऑब्जरवेशन ठीक हो/ 

स्पेस के निर्धारण में कोई समस्या न था। गुरु जी पहले ही उसे सिरोधर तिवारी के अड्डा अर्थात दल तिवारी बाबा के स्थान के रूप में आइडेंटिफाई कर लिए थे/
बस आगे क्या था धीरे-धीरे ही सही हमलोग लोग अपने ऑब्जेक्टिव की ओर बढ़ने लगे थे/ गुरु जी ने आगे बताया कि चोर बाहर से नहीं आता/ चोर बाहर से नहीं आ सकता यह गुरुजी के अनुभव की बात थी/ गुरुजी के इस अनुभव के पीछे का तर्क कुछ-कुछ वैसा ही था जैसे कि खतरा हमेशा अपनो से होती है/  कुल मिलाकर दो बातें स्पष्ट हो चूँकि थी अथवा गुरुजी स्पष्ट कर चुके थे/एक, चोर बाहर से नहीं आया है और दो, उसका खेत भी कहीं आस पास ही होना चाहिए / 

अभी कुछ देर पहले तक गुरुजी ने जो रिसर्च प्लान किया था वह मुख्यतः परिमाणात्मक था लेकिन, जब उन्होंने अपने अनुभव से यह कहा था कि चोर कोई बाहर से नहीं आता वहीं से वे गुणात्मक शोध की ओर भी कदम बढ़ा लिए थे / अनुभव ऐसा ही गुणात्मक आंकड़ा होता है/ और इसी गुणात्मक आँकड़े के आधार पर गुरुजी ने उस स्थान को निर्धारित कर दिया जहां उस चोर के आने की प्रबल सम्भावना थी/ और हमे उम्मीद थी कि उस माप के पाव वाला व्यक्ति उस अड्डे पर दिन भर में कम-से-कम एकबार अवश्य आता होगा/

अगले ही दिन बाबा के स्थान पर सुबह के 9 बजे से हमलोग आकर बैठ गए/ और तक़रीबन 2:30 बजे तक हमलोग वहीं बैठे रहें/ और वहाँ आते-जाते लोगों की पाँव की लंबाई को अपने सैंपल पदचिन्ह की लंबाई  से मिलाते रहे/ आख़िरकार 2:30 के बाद उस लंबे-चौड़े पाँव वाले व्यक्ति का आगमन हुआ जिसकी तलाश बिना खाये-पिये हमलोग सुबह से कर रहे थे/ इसतरह नरमुनि यादव के रूप में उस चोर का आइडेंटिफिकेशन कि प्रक्रिया समाप्त हुआ/
 चोर का आइडेंटिफिकेशन हो चुका था/ अब मुझे भी मज़ा आने लगा था/ किंतु , वास्तविक गुरु वह होता है जो आपको पूरा रिसर्च सिखाए  न कि आधा/ मतलब रिसर्च हमेशा एप्लाइड होना चाहिए/ आप लोग भूल गये होंगे कि गुरुजी आरम्भ में ही रिसर्च का उदेश्य  बिल्कुल स्पष्ट कर दिए थे/ उनके अनुसार यह एक एक्शन रिसर्च था---खून का बदला खून से / अर्थात नरमुनि यादव  का खेत काटा जाना अभी शेष था/ 

असल मे गुरुजी शोध के इसी चरण में चूक गए थे। उन्हें नरमुनि यादव का खेत का पहचान नहीं था/ अब खेत को पहचान कराने के लिए हमे एक अन्य व्यक्ति से मदद लेने की जरूरत थी/ शोध की इसी परिसीमा के कारण हमें इस अनुसंधान में एक वाह्य पर्यवेक्षक की जरूरत पड़ी/ हमारी यह जरूरत मुन्ना बिहारी को टीम में शामिल करने पर समाप्त हुई/ मुन्ना बिहारी ने बिना किसी संकोच के कहा कि मैं उसका खेत पहचानता हूँ/ 

संध्या के 6 बजे का समय निर्धारित हुआ एक्शन के लिए/ मतलब मिशन खून के बदले खून के लिए/ हमलोग उस खेत को संध्या के 6 बजे काफ़ी नुकसान पहुचाएं/  यहां से आप अंदाजा नही लगा सकेंगे कि क्या हुआ होगा आगे/....वास्तव में इस चोरी को कोई चुपके से देख रहा था/ वह कोई और नहीं था... वह सिरोधर तिवारी हीं थें/ हमलोगों को उन्होंने रँगे हाथ  पकड़ लिया था/ बाद में यह भी पता चला की वो खेत भी  उन्हीं का है/ सबूत सहित उन्होंने हमलोगों के घरों पर शिकायत किया / बहोत पिटे गए थे, भारी बदनामी हुईं सो अलग(अकादमिक चोरी)/ सारा गलती मुन्ना बिहारी का था उसी ने गलती किया था खेत को पहचानने में/ गुरुजी ने विफलता का सारा श्रेय उसी के सर पर फोड़ा था/

 निष्कर्ष यह था कि गुरुजी का एकबात कहना पूर्णतः सत्य था कि इस क्षेत्र में सिरोधन तिवारी के जानकारी के बिना कोई चोरी नहीं हो सकती है(मार्गदर्शक)/ और, 'ऑब्जेक्टिव ऑफ द स्टडी'  की फाइंडिंग यह रही कि हमलोगों  ने जो निष्कर्ष निकाला  था उसको एकेडमिक जगत(पापा,भाई और अन्य लोग) ने एक सिरे से ख़ारिज कर दिया था / आप सभी को याद होगा इसके लिए हमलोग पिटे गये थे और गाँव भर मे इज़्ज़त की हानि भी हुई थी/ 

अंत में, मैं यह सलाह अवश्य देना चाहूंगा कि जब भी आप  रिसर्च करें तो अंतिम समय में आइडेंटिफायर के रूप में शामिल कंट्रोल वेरिएबल(मुन्ना बिहारी) को अच्छे से अवश्य जांच लें, अन्यथा शोध विफल होगा/

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