कृष्ण पर मेरे संक्षिप्त विचार-अमित भूषण

ग्रीष्म में राम से बुद्ध तक की यात्रा की थी। कृष्ण की यात्रा अभी अधूरी है। मेरे मन में बचपन से समझदार होने तक यह प्रेरणा रही कि कभी मौका मिलेगा तो राम, कृष्ण, बुद्ध तक की यात्रा एक साथ करूंगा। मैं अपने व्यक्तिगत बौद्धिक दायरे में राम, कृष्ण तथा बुद्ध को एक साथ देखता हूं।

इस विषय पर अपनी जो थोड़ी बहुत समझ बनती है, उसे लिखता हूं। मेरी समझ संगीत से बनती है। संगीत मेरे जीवन का अहम हिस्सा है।

राम और बुद्ध अपने को ईश्वर नहीं मानते हैं। राम पुरुषोत्तम हैं। इसी प्रकार बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व को ही नहीं मानते, हालांकि जब उनकी मृत्यु होती है तो उन्हें ईश्वर के अवतार रूप में स्वीकार किया गया।

कृष्ण इन दोनों से अलग हैं। कृष्ण पैदा होते ही अपने ईश्वर होने की पुष्टि करते हैं। सभी कलाओं के साथ वे अपने ईश्वर होने की पुष्टि करते हैं।

कृष्ण सभी कलाओं से परिपूर्ण हैं इसका तात्पर्य यह है कि उन्हें सारे स्किल्स आती हैं। कृष्ण बढ़िया वक्ता हैं। गीता अर्थात् महाभारत के कई गीतों में से सर्वाधिक प्रसिद्ध गीत। संगीत का ज्ञान उन्हें था। बांसुरी बहुत बढ़िया बजाते हैं। नृत्य बढ़िया करते हैं। राधा के साथ उनका आध्यात्मिक प्रेम रहा, वहीं रुक्मिणी पर संकट जानकर उन्हें उनके घर से ले जाकर विवाह करते हैं। आगे चलकर अपनी बहन सुभद्रा पर संकट जानकर अपने बड़े भाई के विपरीत जाकर सुभद्रा को दुर्योधन के हाथ जाने से बचाकर अपने सखा अर्जुन से उनका विवाह करा देते हैं।

इससे पहले वे जरूरत पड़ने पर अपने मामा का भी वध करते हैं और अधिक जरूरत पड़ने पर बिना किसी की परवाह किए युद्ध के मैदान से भी भाग जाते हैं।

वे कुश्ती कला में भी निपुण थे। वे अपने मामा कंस का वध कुश्ती से ही किया है।

महान कुरु कुल की राजसभा में जब उसकी अपनी बहू की ही अस्मिता चीर हरण के रूप में उनके पांच पतियों की उपस्थिति में हो रही थी, तब रक्षा करने हेतु कृष्ण ही वहां आते हैं। रक्षाबंधन की परंपरा कृष्ण से है।

कृष्ण महाभारत के युद्ध के पक्ष में नहीं हैं, वे अपने को शांतिदूत के रूप में प्रस्तुत करते हैं, फिर भी युद्ध जब अवश्यंभावी हो जाता है और युद्ध के मैदान में पांडव जब लड़खड़ा जाते हैं तो गीता में कृष्ण एक वैकल्पिक या सदा के लिए एक मार्ग कर्म योग को गायन रूप में प्रस्तुत कर उपदेश देते हैं।

कृष्ण व्यवहारिक भी हैं। कृष्ण सदैव समाधान निकालते हैं। कृष्ण हथियारों के मामले में अत्याधुनिक थे। जहां अन्य लोगों के पास जो बेहतरीन अस्त्र-शस्त्र हैं, वे कृष्ण के पास भी सुलभ हैं किंतु, कृष्ण के पास जो एक चक्राकार हथियार है, वह अन्य किसी के पास नहीं है।

कृष्ण एक उज्ज्वल विद्यार्थी हैं, शानदार गुरु हैं और जरूरत पड़ने पर मझधार से निकालने वाले सारथी भी हैं।

कृष्ण इसलिए भी व्यवहारिक रणनीतिकार हैं क्योंकि जब वे देखते हैं कि वे जरासंध को मार नहीं सकते तो नई जगह जाकर अपना एक नया राज्य बसा लेते हैं। और जरासंध की कमजोरियों का पता लगाते हैं। भीम को तैयार करते हैं, और बाद में खुली प्रतिस्पर्धा की चुनौती देकर उसे बीच से फड़वा देते हैं।

कृष्ण धैर्यवान हैं। सही समय आने की सदैव प्रतीक्षा करते हैं। महिलाओं की इज्जत और मर्यादा के मुखर समर्थक हैं। पांचाली के पांच पतियों से विवाह कराने हेतु अपनी बुआ की भर्त्सना करते हैं और कहते हैं नारी कोई वस्तु नहीं जिसे बांट लिया जाए। चीर हरण के वक्त रक्षा हेतु उपस्थित होते हैं, स्वयं प्रेम विवाह प्रस्ताव को स्वीकार किया और बहन के लिए भी ऐसा ही किया और जब हजारों लड़कियों की इज्जत और मर्यादा और समाज में उनकी स्थिति पर संकट देखा तो उन सबको उन्होंने अपनी रानी के समान दर्जा दिया।

इन सब बातों के बावजूद कृष्ण में कमजोरी थी। उनकी एड़ी बहुत कमजोर थी। एक बहेलिया उसी पर बाण से आघात करता है जिससे भगवान कृष्ण की मृत्यु होती है और वे अपने अंतिम समय में बिल्कुल अकेले थे।

डॉ. अमित भूषण द्विवेदी अर्थशास्त्र विभाग, प्रधानमंत्री उत्कृष्ट महाविद्यालय, शासकीय तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर में अर्थशास्त्र पढ़ाते है।

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