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महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक हैं-राहुल त्रिपाठी

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समकालीन मानव सभ्यता में  मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें हम सम्मान से महात्मा गांधी कहते हैं, से अधिक चर्चित व्यक्ति शायद ही कोई हो। 20 वीं शताब्दी में, जब दुनिया पूंजीवाद, मार्क्सवाद, फासीवाद, अतिराष्ट्रवाद जैसे चरम राजनीतिक मान्यताओं के भंवर में फंसी हुई थी, तभी इस विलक्षण संत  ने अपने जीवन जीने के तरीके तथा आचरण से मानव सभ्यता को एक वैकल्पिक सादगीपूर्ण, परंतु संपोषणीय रास्ता दिखाया। उनका मार्ग इस अर्थ में वैकल्पिक परंतु क्रांतिकारी था कि वह प्रकृति के अंधाधुंध दोहन पर आधारित न होकर भारतीय आदर्शों से अनुप्राणित तथा मानव प्रकृति सहकार पर टिका था। यही कारण है कि अपने आदर्शों और विलक्षण व्यक्तित्व के कारण महात्मा गांधी उन व्यक्तियों में से रहे हैं जिन्हें एक साथ निंदा तथा स्तुति  प्राप्त हुई है। कोई व्यक्ति प्रासंगिक है या नहीं यह दो बातों पर निर्भर करता है। प्रथम- उसने क्या कहा अर्थात उसके विचार क्या थे और द्वितीय- उसने क्या किया अर्थात उसका आचरण कैसा था। विचार तथा आचरण में तारतम्यता संत के चरित्र की विशेषता होती है। इस अर्थ में भी गांधी दूसरे चिंतकों से अलग थे कि उनकी कथनी तथ

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका-राहुल त्रिपाठी

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        फ़ाइल चित्र: राहुल त्रिपाठी "खेती उत्तम काज है,  इहि सम और न होय। खाबे को सबको मिलै, खेती कीजे सोय।।" अर्थात कृषि उत्तम कार्य है;इसके बराबर कोई दूसरा कार्य नहीं है; यह सबको भोजन देती है इसलिये कृषि करना चाहिये. भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति करने वाली कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. रामायण,महाभारत, मौर्यकाल,मध्यकाल से होते हुए वर्तमान काल(वर्ष 2021तक) अनेकानेक बदलाव हुये। इन युग परिवर्तनकारी बदलाओं के बीच अगर कुछ स्थिर रहा है है तो वह कृषि ही है जो आज तक भारतीय का मुख्य आधार बनी हुई है. औपचारिक अर्थशास्त्र में किसी भी अर्थव्यवस्था को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जाता है- प्राथमिक,द्वितीयक, तृतीयक.  भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ये तीन भाग पाए जाते हैं-प्राथमिक क्षेत्र कृषि का है; द्वितीयक क्षेत्र उद्योग का और तृतीयक क्षेत्र सेवा का. बिना प्राथमिक क्षेत्र के द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र चल ही नहीं सकते.  उदाहरण के लिए फर्नीचर के उद्योग को लकड़ी की आपूर्ति कृषि क्षेत्र के एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा वानिकी से प्राप्त होती है.उद्योग को लकड़ी बेचकर किस

खाद्य सुरक्षा के नैतिक आयाम-अमित भूषण

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खाद्य सुरक्षा के नैतिक आयाम मानव जीवन के विविध आयामों से जुड़े मुद्दों में खाद्य सुरक्षा का मुद्दा अपेक्षाकृत जटिल है। मानव जीवन के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं- रोटी, कपड़ा और मकान में 'रोटी' अर्थात, खाद्य सुरक्षा को सबसे पहले गिना जाता है। यही कारण है कि 'भोजन के अधिकार' अर्थात 'खाद्य सुरक्षा' को  मानव जाति के मूलभूत सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक एवं नैतिक अधिकार के रूप में देखा जाता है। यद्यपि समाज और नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा, राज्य से मांगा गया एक नैतिक दावा है; फिर भी, खाद्य सुरक्षा के नैतिक आयामों पर स्वतंत्र अध्ययन कम ही हुए है। इस आलोक में प्रस्तुत लेख खाद्य सुरक्षा के नैतिक पहलुओं की रूपरेखा को खींचने का प्रयास करता है। प्राचीन काल में विभिन्न सामाजिक-धार्मिक परम्पराओं में सदावर्त की व्यवस्था का उल्लेख प्राप्त होता है। इस व्यवस्था के तहत राजा या धनाढ्य व्यक्ति समाज में रहने वाले दरिद्र,असहाय,तथा वंचितों के लिए भोजन व्यवस्था का निःशुल्क प्रबंध करते थे। इसका लाभ यह था कि जब किसी व्यक्ति को भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता था,तब वह इस सदावर्त में स्वयं तथा अप

अफगानिस्तान में अमरीका ने क्या पाया? डॉ. पुष्पेंद्र कुमार मिश्र

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अफगानिस्तान में अमरीका ने क्या पाया? डॉ. पुष्पेंद्र कुमार मिश्र, सहायक प्रोफेसर राजनीति शास्त्र, डी. एन. पी.जी.कॉलेज, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश।                    बुलंदशहर से डॉ. पुष्पेंद्र मिश्र, फ़ाइल चित्र लगभग 20 वर्षों तक अफगानिस्तान में टिके रहने के बाद; अफगानिस्तान के लिए की गई तमाम प्रतिबद्धताओं, दावों और लोकतन्त्र की पुनस्र्थापना के वादों की आधी-अधूरी सफलता के बीच संयुक्त राज्य अमरीका अब वहाँ से निकलने की तैयारी में है। उल्लेखनीय है कि विगत 14 अप्रैल को अमरीका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह ऐलान किया है कि वल्र्ड ट्रेड सेन्टर पर हमले की बरसी (11 सितम्बर) से पहले अफगानिस्तान से अमरीका की पूरी फौज वापस हो जाएगी। जो बाइडेन की यह घोषणा अमरीकी प्रशासन एवं तालिबान के बीच हुए समझौते से अलग है जिसमें कहा गया था कि अमरीकी फौजें मई तक अफगानिस्तान से वापस हो जाएंगी।                         साभार:इंटरनेट से लिया गया चित्र  अमेरिकी राष्ट्रपति की यह घोषणा अनेक निहितार्थों को अपने में समेटे हुए है। अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि अमरीका शीघ्र ही अफगानिस्तान को

बेहतर होता कि किसी भी ग्राम सभा में अंत्योदय की सूची नहीं होती: पीयूष त्रिपाठी

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    अन्तत्योदय अन्न योजना से आगे सम्प्रति: पीयूष त्रिपाठी, सहायक प्रोफेसर राजनीति शास्त्र, डी. एन. पी.जी.कॉलेज, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश। गांधीजी ने एक जंतर दिया है। इसके अनुसार किसी भी काम करने की कसौटी यह जांचने में है कि इससे समाज की कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को कितना फायदा मिलता है। इसी को राल्स ने कहा है कि किसी भी शृंखला की मजबूती उसकी सबसे कमजोर कड़ी से निर्धारित की जाती है। कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति के जीवन में प्रभावी हस्तक्षेप करके तथा सबसे कमजोर कड़ी को मजबूत करके ही समाज को बेहतर बनाया जा सकता है। अंत्योदय अन्न योजना की कल्पना एक ऐसे ही छोटे लेकिन प्रभावी हस्तक्षेप के रूप में की गयी थी।  इस योजना की शुरुआत सन 25 दिसंबर 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के अवसर पर की गयी थी। यह शत-प्रतिशत केंद्र प्रायोजित योजना है जबकि इस कार्यक्रम के अंतर्गत लाभार्थियों की पहचान राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत लाभार्थी परिवार को 35 किलो खाद्यान्न दिया जाता है। गेहूं 2 रुपये प्रति किलो और चावल 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से

आदर्श की स्थिति वास्तविक समाज में नहीं पाया जाता: अमित भूषण

द्वीतीय श्रेष्ठ का सिद्धान्त: समाज में प्रथम श्रेष्ठ(उदाहरण परेटो का अनुकूलतम सिद्धान्त) कुछ भी नहीं होता है। आदर्श केवल आदर्श होता है और उसके बारे में हम केवल कल्पना कर सकते है।  आदर्श की स्थिति के नीचे की जो श्रेष्ठ दशा है वहीँ प्राप्य है। जो प्राप्य है वहीं वास्तविक दशा है। साधारण शब्दों में आदर्श की स्थिति वास्तविक समाज मे नहीं पाया जाता है और जो वास्तविक समाज मे पाया जाता है वह 'प्रथम श्रेष्ठ' न होकर 'द्वीतीय श्रेष्ठ' होता है। द्वीतीय श्रेष्ठ(लिप्से और लकास्टर) सिद्धान्त कहता है कि 'श्रेष्ठ दशा' के लिए कुछ मान्यताओं का पूरा होना अनिवार्य है और उसमे ऐसी एक भी मान्यता नहीं होता है जो वास्तविक जगत में पूरा होता हो या कभी उनके पूरा होने की सम्भावना हो। उदाहरण के रूप में #रामराज्य ले सकते है। वह राम के समय मे भी अस्तित्व में नहीं हुआ। या गाँधी जी का #ग्रामस्वराज्य गाँधी जी के भी समय मे अस्तित्व में नहीं आया।   प्रथम श्रेष्ठ अवास्तविक होता है और लंबे कालखंड में अप्राप्य भी होता है।  फिर वास्तविक जगत में प्राप्य क्या है? लिप्से और लंकास्टर कहते है द्वीतीय श्रेष्ठ

पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी एकल न होकर सामूहिक है: अमित भूषण

विश्व पृथ्वी दिवस 2021:  सामूहिक एकता ही धरती की रक्षा कर सकती है. देखने मे भले ही यह लाइन छोटी है, किंतु इसका प्रभाव व्यापक है। पिछले वर्ष इसी पखवारे में हम पर्यावरण संबंधी कई क्रांतिकारी बदलाव देखे थे। वजह था विश्वव्यापी लॉकडाउन। राजनीति शास्त्र विषय के सहायक प्रोफेसर श्री Peeyush Tripathi बताते है कि तब लॉकडाउन के कारण ऐसा लगा कि 'मनुष्य के पाबंद होते ही प्रकृति आजाद हो गयी।' किन्तु, धीरे-धीरे पक्षियों के कलरव, साफ गगन, पवित्र हवा आदि आदि से हम पुनः दूर होने लगे और 'उपभोग की लक्ष्मण रेखा' को पार करने लगे। विश्व पृथ्वी दिवस मनाने का मुख्य वजह पर्यावरण की सुरक्षा कर पृथ्वी को सुरक्षित करने से  है। संभवतः हम आखिरी पीढ़ी है जो अब तक पृथ्वी को हुई क्षति को नियंत्रित कर सकते है। बाद कि पीढ़ी केवल पर्यावरण असंतुलन के ख़ामियाजा ही भुगतने वाली है। और विश्व की एक बड़ी जनसंख्या असहाय होगी। हर बार की भाँति इस बार पृथ्वी दिवस का विषय 'हमारी पृथ्वी का जीर्णोद्धार' और 'प्रत्येक व्यक्ति के पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने' पर केंद्रित है। हम सभी जानते है पृथ्वी पर जीवन मानव

गणति सभ्यता का निर्माण करता है: अमित भूषण

गणित एवम सभ्यता का विकास साथ-साथ हुआ। गणति(अंकगणित), जो कि अंको एवम संख्याओं का अध्ययन करता है तथा जिनपर समस्त सभ्यता टिकी हुई है, के बारे में अनुमान/संभावना करना बेहद आसान है। कैसे? एक के बाद दो, दो के बाद तीन, तीन के बाद चार आता है...और ऐसे ही आगे फैला तो अनंत सिकुड़ा तो अनंत और हर दो के बीच अनंत तथा कुछ नही है तो शून्य। सदा ऐसे ही होता है। इसमे से यदि किसी  एक का भी क्रम भंग होगा तो समस्त सभ्यता समाप्त। कैसे? उदाहरण के लिए अकेले  पैथगोरस प्रमेय के भंग होने से समस्त पिरामिड संरचना और हमारे घर-बार सब समाप्त। इसीलिए कहा कि गणति सभ्यता का निर्माण करता है और यह मनुष्य के साथ ही विकसित हुआ। अंकगणित में अनुमान करना आसान है। लेकिन समाज इतना आसान नहीं होता है। समाजिक सम्बंध इस तरह से क्रमबद्ध नहीं होते है। समाज मे कोई अंकगणितीय क्रम नहीं पाया जाता है। अतः समाजिक संबंधों के बारे में अनुमान लगाना अत्यंत कठिन और उतना ही जटिल है।  तो क्या गणित अधूरा है? यह केवल सभ्यता के विकास में ही हमारा मदद करता है। या केवल सरल अनुमान ही व्यक्त करता है। नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। गणति का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग

कोरोना डायरी: अमित भूषण

गाँवों में कोरोना को लेकर 'व्यक्तिगत भय' यदि  थोड़ा बहुत है भी तो 'सामूहिक भय' बिल्कुल भी नहीं है। एक ओर गाँवों में जहां कोरोना जाँच की पर्याप्त सुविधा नहीं है, वहीं दूसरी ओर जांच कराने की सुविधा मुफ्त में भी उपलब्ध होती तो भी लोग कराना नहीं चाहेंगे। अब गाँवों में भी संक्रमण के मामले तेजी से रिपोर्ट होने लगी है। पिछले कुछ दिनों से गाँवों से कोरोना मृत्यु की खबरे भी आने लगी है। बावजूद इसके लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा, वे न केवल विवाह करवाने में मसगूल है, बल्कि, बिना सोचे-समझे 500-600 की भीड़ इक्कठा कर ले रहे है। और प्रशासन भी सम्भवतः तक चुका है। सच्चाई यह है कि विवाह कराने वालों ऐसे लोगो  को कभी इस बात की जानकारी नहीं चलेगी की वे अप्रत्यक्ष रूप से कितने लोगों की जीवन को जोख़िम में डाल दिये हैं अथवा उनके परिवारों के भविष्य को दांव पर डाल दिये है या फिर उन्हें इस बात का भी कभी ज्ञान नहीं होगा कि कितने लोग मर गए। जी हाँ कभी नहीं।  जहाँ चुनाव कराने के मामले में  सरकार गलत थी, वहीं विवाह जैसे उत्सव कराने के मामले  में परिवार और उस उत्सव में शामिल होने वाले लोग एक सीमा तक गलत ह

व्यवस्था की हिंसा को समाप्त करने के लिए अहिंसक संस्थाओं का निर्माण करना होगा: अमित भूषण

व्यवस्था की हिंसा के विकल्प के निर्माण में दो स्तरों पर काम करना होगा। एक, अहिंसा से संकल्पित ऐसे व्यक्तियों के समूह का निर्माण जिनकी अन्तरात्मा की शक्ति उच्च स्तर पर विकसित हो। दूसरे, ऐसी अहिंसक व्यवस्थाओं का निर्माण करते जाना जिनके परिणामस्वरूप हिंसा की व्यवस्थाओं का दायरा सीमित होता जाये। इसके प्रारंभिक बिंदु के रूप में लोकसत्ता का निर्माण और लोक केन्द्रित अर्थ व्यवस्था का निर्माण करना होगा। लोक का शोषण करने वाली और लोक का विभाजन करने वाली सभी शक्तियों का निषेध करना होगा और उनके खिलाफ सत्याग्रह करना होगा।

अनूपपुर जिले के संदर्भ में 'एक जिला एक उत्पाद कार्यक्रम': अमित भूषण

दिनाँक 05 जनवरी 2021 को अनूपपुर जिले की प्रशंसा माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किया हैं। मुख्यमंत्री जी ने कहा है कि " एक जिला एक उत्पाद(ODOP)"  के तहत अनुपपुर जिले ने शानदार प्रदर्शन किया है। उन्होंने मुख्यरूप से 4-5 उत्पादों को गिनवाया गया है जिसमें जिले से निर्यात की जा सकने की संभावनाएं है।  इन उत्पादों में कोदो, शहद, गुल्बकावली अर्क और टमाटर प्रमुख है। मेरा अपना निजी अनुभव है कि अनूपपुर जिले में और भी कई उत्पाद है जिनमे निर्यात की पॉसिबिलिटी है चाहे वह निर्यात अंतर जिला या अंतर्राज्यीय हीं क्यों न  हो? यहां सरीफा, अमरूद, पपीता, कचनार, मशरुम, बांस और बाँस की मूल, नाशपाती, जामुन, कमल गट्टा आदि अनेक उत्पाद है। वनोपज में महुआ और शहद प्रमुख है। कई अवसरों पर इनमें से कुछ फलों एवम सब्जियों को सब्जी बाजार में  फेका हुआ भी पाया हूँ। आप सोचिए सरीफा जहाँ हमलोग 60-80 के रेंज से कम में साल के किसी महीने नहीं पाते अनुपपुर की बाजारों में आप 20 रुपये किलो या कभी कभी तो यूहीं पा जाएंगे।मुझे नही पता कि सरीफा से चीनी बनाया जा सकता है की नही। खैर, अमरकंटक ब्रांड कोदो(कोदई) और

जनसंख्या संबंधी दो नवीन तथ्य: अमित भूषण

कितनी अचरज और विरोधाभास की बात है कि भारतीय समाज में पुत्र प्राप्ति की अधिक मोह का एक परिणाम जनसंख्या वृद्धि तो दूसरा परिणाम लिंगानुपात में वृद्धि लाता है। अर्थात, प्रथम संतान बिटिया पैदा होने के बाद माता-पिता तब तक सन्तानोत्पत्ति में लगे रहते है जब तक कि एक बेटा ना हो जाये(स्टॉपिंग रूल)। इसको ऐसे समझे, मान ले कि किसी दंपति की प्रथम संतान बिटिया पैदा होती है तो  वे वही पर नही रुक जाते है, वे तब तक संतति में लगे रहते है जब तक कि एक बेटा ना हो जाये। अब फिर से मान ले कि उपर्युक्त दम्पति का चौथा संतान बेटा होता है। बेटा होने पर दम्पति संतति को रोक देते है।इस क्रम में उनके घर  तीन बिटिया, और एक बेटा हो जाता है।  इसके दो निष्कर्ष हुए..... 1. जनसंख्या वृद्धि हुई(हम दो हमारे दो से भी आगे, हम दो हमारे चार)। 2.  तीन बिटिया और एक बेटा, अर्थात लिंगानुपात में सुधार हुआ।

मेरा प्रथम शोध यात्रा:अमित भूषण

अनेक लोगों से ठीक उलट मैं बचपन से ही रिसर्च स्कॉलर था / बचपन से ही मेरे दिमाग में हमेशा  शरारतें उमड़ती-घुमड़ती रहती थी/ यह उन दिनों की बात है जब मेरे एक बडे भाई मेरा गुरु हुआ करते थे/ हुआ करते थे वो इसलिए क्योंकि अब उतना उनसे प्रेरित नहीं रहता जितना कि उस वक़्त हुआ करता था। तब मैं शायद कक्षा सातवीं या आठवीं में पढ़ रहा था/ निःसंदेह तब अपने गाँव पर ही रहकर पढ़ाई करता था/ खेती और पशुपालन दोनों होता था और छुटपन से ही इस कार्य मे लग चुके थे/ खरीफ के फसल में हमलोग मुख्य रूप से मक्का उगाते थे/  एक दिन जब घनघोर बारिश हुई थी और हमारे बड़े भाई जी उर्फ गुरुजी और मैं  सुबह के वक़्त अपने खेत पहुंचे तो यह पाया कि किसी ने खेत मे से कुल जमा मिलाकर 50-60 मक्के के भुट्टे को काट लिया था/ कटे हुए भुट्टे को देखकर मैं गुरुजी से कहा छोड़ो किसी ने काट लिया होगा/ उन दिनों हमलोग खूूूब  फ़िल्म देखा करते थे, सिनेमा हाल में नहीं शादियो में अक्सर चलने वाले वीडियो पर देखते थे/ फ़िल्म के डायलॉग का असर मेरे ऊपर गुरूजी के कृपा से ही पड़ता था/ गुरु ने कटे हुए भुट्टो को देखकर कहा  नही अमित खून का बदला खून से लिया जाएगा/ चूँकि

कोरोना वायरस विश्व का सबसे सेक्युलर जीव है- डॉ. भवनीत सिंह बत्रा

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लेखक:  डॉ भवनीत सिंह बत्रा, सहायक प्रोफेसर अर्थशास्त्र डी. एन. पी.जी.कॉलेज,  बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश। अब यह हम सबकी नैतिक एवं राष्ट्रीय जिम्मेदारी है कि हम इस महामारी में संक्रमित न हों और जितना शीघ्र हो सके अपना और अपने परिवार के सदस्यों का वैक्सीनेशन कराएं। यदि हम संक्रमित नहीं होंगे तो अपने परिवार और आसपास के अन्य लोगों को भी संक्रमित होने से बचाएंगे, अस्पताल एवं चिकित्सालय पर दबाव कम करने में मदद करेंगे, और बेहद महंगे इलाज और दवाइयों के कालाबाजारी के प्रकोप से भी बचेंगे। वैक्सीन का टीका लगवाने से दो लाभ होंगे। पहला, यदि आप संक्रमित हो भी जाते हैं तब यह बीमारी इतनी गंभीर नहीं होगी कि आपको अस्पताल जाना पड़े। दूसरा, आप वायरस में लगातार होने वाले म्यूटेशन को रोकने में अपनी छोटी पर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वास्तव में कोरोना वायरस विश्व का सबसे सेक्यूलर जीव है क्योंकि यह धर्म, जाति, नस्ल, अमीरी, गरीबी किसी में भी भेदभाव नहीं करता। यह आम और खास दोनों प्रकार के लोगों को काल के गाल में ले जा रहा है। इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए सिर्फ विज्ञान पर भरोसा करें।  विज्ञान द्वा

SHABD(शब्द) क्या है?अमित भूषण

प्रिय छात्रों एवम पाठकगण, मैं हूँ अमित भूषण और उम्मीद करता हूँ कि इस आपदा काल में आप सब अपने परिवार सहित सकुशल होंगे। अवश्य ही वर्तमान समय बहुत संकट का समय है फिर भी जबकि जीवन के सभी अंग बुरे तरीक़े से प्रभावित हो, पठन-पाठन का कार्य अवश्य चलते रहना चाहिए। उसी के क्रम में कल मुझे अचानक याद आया कि एकबार प्रदीप भार्गव सर किसी आईडिया नाम की वेबसाइट पर लिखने और पढ़ने का मुझे सलाह दिए थे। तब मैं भूल गया था। फिर जब मैं अपने विभाग के एक कार्यक्रम में श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार सर को आमंत्रित किया था तो वे भी इसके बारे में छात्रों को बताए थे... कुछ दिन बिता और फिर मैं भूल गया। फिर एकबार इसी वेबसाइट के बारे में मुझे डी. एन. पी.जी.कॉलेज के अर्थशास्त्र विषय के सहायक प्रोफेसर श्री भवनीत सिंह बत्रा ने भी बताया और मैं फिर से भूल गया था। कई महीनों तक निजी कार्य मे व्यस्त रहने के बाद जब शिक्षा की तरफ पुनः वापिस आया तो कल मैं संतोष सर से इसके बारे में पूरी जानकारी और वेबसाइट का लिंक प्राप्त हुआ। उस वेबसाइट का नाम है- http://www.networkideas.org ,  नेटवर्क आईडिया, में