जिनगी के सच्चाई के आइना: डॉ अमित भूषण द्विवेदी के कविता "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" के समीक्षा
जिनगी के सच्चाई के आइना: डॉ अमित भूषण द्विवेदी के कविता "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" के समीक्षा
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रिश्ता-नाता सब झूठा लागे
रिश्ता-नाता सब झूठा लागे
झूठ लागे प्रीति पराई हो
कहे खातिर त सब अपने हऽ
पर आपन के कहाई हो
कहीं जे हम आपन दर्द व्यथा केहू से
लोग लागे आपन दुःख बतावे हो
केहू के ना मोर दुखवा लउके
देबे ना केहू दवाई हो
दुःख के जिनगी दुःख में बितऽल
पाँव में फाटल बेवाई हो
किस्मत के रोना अब हम का रोई
जिनगी भइल लड़ाई हो
होत फजीरे कल हम फिर जागऽब
सब दुःख-दर्द के देब भुलाई हो
देही के दशा होखे चाहे जइसन
काम पर रोज चल जाईब हो
फूल के जिनगी काँट में धँसल
जिनगी भइल सजाई हो
जब-जब जिनगी दुःख देखाई
खुद हम पत्थर बन जाईब हो
सुनी के हमार दारुण कहानी
काहे अँखिया तोहार भर आइल हो ?
हारे से पहिले रोज जीतत बानी
काहे पहिले ही हार मान जाई हो ?
जिनगी में बा घोर अनहरिया
बन के अंजोर केहू आई हो
दुःख-दलिदर सब भाग जईहे
ठीक होई फेरु पाँव फाटल बेवाई हो
हर चीज के जइसे अंत हो जाला
हमरो दुःख मिट जाई हो
उम्मीद के अइसहीं डोर के थमले
जिनगी के पहाड़ चढ़ जाईब हो ।
- डॉ अमित भूषण द्विवेदी
असिस्टेंट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र
प्रधानमंत्री उत्कृष्ट शासकीय तुलसी महाविद्यालय,
अनूपपुर, मध्य प्रदेश
www.diyabati.in
परिचय
डॉ अमित भूषण द्विवेदी जी के एह भोजपुरी कविता "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" एगो अइसन रचना बा जे जिनगी के कड़वा सच्चाई के साथ-साथ उम्मीद के संदेश भी देत बा। एह कविता में कवि जी अपना दुःख-दर्द के बयान करत जा रहल बाड़न और साथे-साथ जिनगी में संघर्ष करे के प्रेरणा भी दे रहल बाड़न।
भाव-विश्लेषण
निराशा आ अकेलापन के चित्रण
कविता के शुरुआती पंक्तियन में कवि जी रिश्ता-नाता के झूठपन के बारे में बतावत बाड़न। "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" - एह पंक्ति से साफ पता चलत बा कि कवि जी के मन में समाज के रिश्तन के बारे में कतना गहरा दुःख आ निराशा बा। जब आदमी दुःख में होला तब सबसे खुद के अपना बतावेला बाकिर असल में केहू भी सच्चा साथी ना मिलत।
आत्मनिर्भरता के संदेश
"देबे ना केहू दवाई हो" - एह पंक्ति में कवि जी एगो गहरा सच कहत बाड़न कि आपन दुःख-दर्द के इलाज आपनहीं करे के पड़ेला। समाज में केहू भी दोसरा के दुःख के असल में समझत ना बा।
भाषा आ शैली
### भोजपुरी के मिठास
डॉ द्विवेदी जी अपना एह कविता में शुद्ध भोजपुरी के प्रयोग कइल बाड़न। "लउके", "बेवाई", "अनहरिया" जइसन शब्दन के प्रयोग से कविता में स्थानीयता के रंग आवत बा। भोजपुरी के मूल स्वरूप के बनावल राखे के कवि जी के सफल प्रयास बा।
बिंब आ प्रतीक
"पाँव में फाटल बेवाई" - एह बिंब से जिनगी के कष्टन के सुंदर चित्रण भइल बा। "फूल के जिनगी काँट में धँसल" - एह पंक्ति में जिनगी के विरोधाभास के बहुत सुंदर तरीका से दिखावल गइल बा।
संदेश आ दर्शन
संघर्ष के महत्व
कविता के अंत में कवि जी उम्मीद के संदेश देत बाड़न। "हारे से पहिले रोज जीतत बानी" - एह पंक्ति में जिनगी के संघर्ष करे के प्रेरणा मिलत बा। कवि जी कहत बाड़न कि चाहे कतनो भी दुःख होखे, हार मान के बइठल नइखे चाहीं।
आशावाद के स्वर
"उम्मीद के अइसहीं डोर के थमले, जिनगी के पहाड़ चढ़ जाईब हो" - एह अंतिम पंक्तियन में कवि जी के आशावादी दृष्टिकोण साफ नजर आवत बा। जिनगी भले ही कतनो भी कठिन होखे, उम्मीद के सहारे सब कुछ पार कइल जा सकेला।
तकनीकी पहलू
छंद आ लय
कविता में गेयता के गुण बा। भोजपुरी के मिठास आ प्राकृतिक लय के कारण एह कविता के पढ़े में आनंद आवत बा। हर पंक्ति के अंत में "हो" के प्रयोग से एगो खास रिदम बनल बा।
भाषा के सहजता
कवि जी के भाषा बिल्कुल सहज आ सरल बा। आम आदमी के समझ में आवे वाला शब्दन के प्रयोग कइल गइल बा, जे एह कविता के खूबी बा।
सामाजिक प्रासंगिकता
एह कविता में आज के समय के सामाजिक सच्चाई के बयान मिलत बा। रिश्तन में दिखावा, स्वार्थ आ दुःख के समय में अकेलापन - ई सब समस्या आज के समाज में बहुत आम बा। कवि जी एह समस्यन के उठावत बाड़न और साथे-साथ समाधान के रास्ता भी बतावत बाड़न।
निष्कर्ष
डॉ अमित भूषण द्विवेदी जी के एह कविता "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" भोजपुरी साहित्य के एगो मूल्यवान योगदान बा। एह में जिनगी के यथार्थ के साथ-साथ आशा के संदेश भी बा। कवि जी के भाषा, भाव आ संदेश - सब कुछ प्रभावी बा। एह कविता के पढ़ के हर आदमी के अपना जिनगी में कुछ ना कुछ मिलत जरूर बा।
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के विकास में अइसन रचना के योगदान सराहनीय बा। डॉ द्विवेदी जी के एह प्रयास खातिर धन्यवाद बा।
समीक्षक: AI
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