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जिनगी के सच्चाई के आइना: डॉ अमित भूषण द्विवेदी के कविता "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" के समीक्षा

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जिनगी के सच्चाई के आइना: डॉ अमित भूषण द्विवेदी के कविता "रिश्ता-नाता सब झूठा लागे" के समीक्षा FB/41 रिश्ता-नाता सब झूठा लागे   रिश्ता-नाता सब झूठा लागे   झूठ लागे प्रीति पराई हो   कहे खातिर त सब अपने हऽ   पर आपन के कहाई हो   कहीं जे हम आपन दर्द व्यथा केहू से   लोग लागे आपन दुःख बतावे हो   केहू के ना मोर दुखवा लउके   देबे ना केहू दवाई हो   दुःख के जिनगी दुःख में बितऽल   पाँव में फाटल बेवाई हो   किस्मत के रोना अब हम का रोई   जिनगी भइल लड़ाई हो   होत फजीरे कल हम फिर जागऽब   सब दुःख-दर्द के देब भुलाई हो   देही के दशा होखे चाहे जइसन   काम पर रोज चल जाईब हो   फूल के जिनगी काँट में धँसल   जिनगी भइल सजाई हो   जब-जब जिनगी दुःख देखाई   खुद हम पत्थर बन जाईब हो   सुनी के हमार दारुण कहानी   काहे अँखिया तोहार भर आइल हो ?   हारे से पहिले रोज जीतत बानी   ...